हनुमान जी के विवाह का रहस्य – Story of Hanuman Ji
Hanuman Ji With Wife : हनुमान जी (Hanuman Story) के विषय में हम जो भी जानते है उसका स्तोत्र सिर्फ रामायण ही है | रामायण आदिकवि वाल्मीक के द्वारा रची गयी थी, और इसी रामायण को आधार बनाकर समय के साथ अनेक भाषाओं में रुपान्तरण किया गया. किन्तु भारतवर्ष में अधिकतर लोगों को, रामभक्त हनुमान जी के अनंत आयामों की तो जानकारी ही नहीं है| वे त्रेता में श्रीराम के साथ थे तो द्वापर में कृष्णा के साथ और इस कलियुग में भी वे जाग्रत है और आगे भी रहेंगे |
हनुमान जी का विस्तृत वर्णन महर्षि पराशर की ‘पराशर संहिता’में मिल जायेगा | यह ग्रन्थ किसी समय में दक्षिणभारत में अत्यधिक प्रचलित था किन्तु कालवश यह लुप्त हो गया है और कुछ लोगों के घर तक सीमित हो गया. उसी पराशर संहिता में से आज आपको हनुमान जी के बारे में कुछ ऐसे तथ्य बताएँगे जो रामायण में आपने नहीं देखे या पढ़े होंगे परन्तु पराशर संहिता में सहज ही मिल जायेंगे |
जैसा की हम सभी को पता है की हनुमान जी तो बाल ब्रह्मचारी थे, और वाल्मीकि, कम्भ, सहित किसी भी रामायण और रामचरित मानस में हनुमान जी के इसी रूप का वर्णन मिलता है, परन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा की पराशर संहिता के अनुसार हनुमान जी विवाह भी हुआ था | लेकिन इसके उपरांत भी हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी ही रहे।
एक कथा के अनुसार हनुमान जी ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। लेकिन हनुमान जी को ज्ञान देते समय भगवन सूर्य के समक्ष एक धर्मसंकट आ गया। वो ये की कुल 9 तरह की विद्या में से बची 4 विद्या प्राप्त करने के लिए विवाहित होना आवश्यक था |
हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और बिना विवाह वो संभव नहीं था और इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वह धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखला सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्य देव ने हनुमान जी की सदैव ब्रह्मचारी रहने के प्रण का भान होते हुवे भी अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमान जी से विवाह करने हेतु मना लिया, विवाह के बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई। और हनुमान जी आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।
पाराशर संहिता में तो स्पष्ट लिखा गया है की खुद सूर्यदेव ने इस शादी पर यह कहा की – यह शादी ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही हुई है और इससे हनुमान जी का ब्रह्मचर्य भी प्रभावित नहीं हुआ। इसका प्रमाण आपको तेलंगाना के खम्मम जिला में येल्नाडु गांव में स्थित हनुमान मंदिर में मिल जायेगा जो हैदराबाद से करीब 220 किलोमीटर दूर है यहां हनुमान जी अपने ब्रह्मचारी रूप में नहीं बल्कि गृहस्थ रूप में अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है। साथ ही इस मंदिर में सुषेन, नील, मगध, जामवंत, गंधमादन के साथ अन्य वानर भी है, और हनुमान जी की सवारी ऊंट भी आपको इस मंदिर में दिख जाएगी |
अब आप सोच रहे होंगे की भला हनुमान जी को ऊंट की क्या जरुरत पड़ी जब वो लंका जाने के लिए पूरा समुन्द्र हो या संजीवनी लाने हेतु हिमालय, को उड़ कर सहज ही पार कर सकते है तो धीरे चलने वाले ऊंट की सवारी क्यों ?
वाल्मीकि रामायण और पराशर संहिता में स्पष्ट रूप से बताया है की सभी वानर लोग किष्किन्धा राज्य में रहते थे और ‘पम्पासुर’ जिसे अब पम्पा झील भी कहा जाता है के चारों ओर घूमते थे। यह पम्पा सरोवर वर्तमान में कर्नाटक में हम्पी के पास कोप्पल जिले में है। यह तुंगभद्रा नदी के समीप है और इसे भारत में पाँच पवित्र सरोवरों या झीलों में से एक माना जाता है।
अन्य चार झीलें हैं मानसरोवर (तिब्बत में कैलास पर्वत के पास), बिन्दुसारोवर (गुजरात में सिद्धपुर के पास), नारायण सरोवर या नारायणसर (कच्छ, गुजरात में) और पुष्कर सरोवर (अजमेर जिले, राजस्थान में)। इन पांचो को पुराणों में पांच सरोवर की संज्ञा दी गयी है |
रामायण के अनुसार वानर राज सुग्रीव कुछ वानर और हनुमान जी के साथ ऋषिमुख पर्वत पर रहते थे, जिसे आज अंजनेय हिल कहा जाता है, और जिसे गलती से हनुमान के जन्म स्थान के रूप में प्रचलित किया गया, वास्तव में हनुमान का जन्म अंजनद्री पहाड़ी पर हुआ था, जो तिरुमला कि सात पहाड़ियों में से एक है.
पराशर संहिता में वर्णित है कि, उन्ही दिनों हनुमान जी की पम्पा झील के किनारे घूमने की इच्छा हुई। तो उन्होंने गन्धमादन की तलहटी के पास, ऊंट पर चढ़ाई की, और उस ऊंट की पीठ को स्वर्ण वस्त्रो से सजाया गया था। हनुमान जी के साथ उनकी पत्नी और सूर्य पुत्री सुवर्चला, सुषेन, नील, मगध, जामवंत, गंधमादन और द्विविदा भी घूमने जा रहे है| और ये स्पष्ट रूप से हम सबको विदित है कि झील के किनारे रेत में चलना आसान नहीं है और केवल एक ऊंट ही आराम से चल सकता है।
चूँकि हनुमान जी झील विहार का आनंद लेना कहते थे तो उड़ कर सपरिवार जाने में वो आनंद नहीं जो रेत में ऊंट की सवारी का है, इसीलिए उन्होंने ऊंट की सवारी की. इसका उल्लेख पराशर संहिता के पम्पा सरो वर्णन श्लोक ३२ और ३३ में भी किया गया है –
एवं सर्वसमृद्धेश्मीन,पम्पा सरसी पावने |
हनुमानसपरिवारः विरुक्तं चक्रुः मय मुदा || (पम्पा सरो वर्णनं – 32)
गंधमादन सैलाग्रा, स्वर्णा रम्भा वणाश्रयात
उष्ट्रमारूह्य हनुमान, हेमास्तराना भूषिताम || (पम्पा सरो वर्णनं – 33)
हनुमान सूक्तम में भी उनका उल्लेख “उष्ट्रा रूढा” (अर्थात जो ऊंट पर सवारी करते है ) के रूप में भी किया है | तो आज आपको ये जानकारी किसी लगी कृपया कमेंट करके ….
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